बहुत समय पहले की बात है एक घुड़सवार था राजा। राजा को अपना घोड़ा
बहुत प्यारा था क्योंकि वह बहुत बलशाली और ताकतवर था। उसी पर सवार होकर वह
घुड़सवारी करता था और रेस में विजयी होकर लौटता था। लेकिन समय के साथ घोड़ा बूढ़ा
होने लगा। राजा ने रेस पर जाने के लिए अब दूसरे घोड़े का चयन कर लिया था। बूढ़ा
घोड़ा अकेला रहने लगा था। एक दिन घूमते-घूमते वह गहरे तालाब में गया और दल-दल में
फंस गया। उसकी आवाज सुनकर लोग इकट्ठा हो गए। यह खबर सुनकर राजा मौके पर पहुंचा और
उसे निकालने की हर संभव जुगत लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
आखिरी में किसी ने राजा को बताया कि एक संत हैं। क्यों उनसे सलाह
ली जाए। राजा को बात जंची। वह खुद उस संत के पास गया और पूरा घटनाक्रम बताया। संत
ने जो उपाय सुझाया, उसे सुनकर हर कोई चौंक गया। संत ने कहा इस घोड़े को बाहर निकालना है तो रेस के लिए नगाड़े बजाए जाएं। राजा ने ऐसा
ही किया और जैसे ही नगाड़े बजने शुरू हुए, घोड़े में जोश आ
गया और उसके पैर तेजी से चलने लगे। वह बिना किसी की मदद से खुद ही दलदल से बाहर
आकर दौड़ पड़ा।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि
यदि हमारे मन में एक बार उत्साह-उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा
स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध
नहीं रह जाता।