अपने को बेहतर बनाने का ये भी है नुस्खा
हम चरित्रवान और गुणवान कैसे बन सकते हैं, यानी अपने आपको कैसे इम्प्रूव कर सकते हैं, इसके लिए बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने बहुत अच्छा नुस्खा सुझाया।
अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक (बिजली से जुड़े तमाम आविष्कारों के जनक), राजनेता, राजनयिक, लेखक, पत्रकार, प्रकाशक, मुद्रक और
स्वतंत्रता सेनानी बेंजामिन फ्रेंक्लिन को कौन नहीं जानता। अपने संघर्षपूर्ण जीवन
का सार उन्होंने अपनी आत्मकथा में दुनिया के सामने रखा। अमेरिका के बोस्टन शहर में
अपने भाई की प्रिंटिंग प्रेस में किशोरावस्था में ही ‘न्यू इंग्लैंड करंट’ जर्नल में
प्रशिक्षु के रूप में अपना सफर शुरू किया और बिना नाम के राजनीतिक माहौल पर
टिप्पणियां लिखते रहे। वे टिप्पणियां छपी भी और उनके भाई को इनके कारण जेल भी जाना
पड़ा। इस गुमनाम लेखक की लेखनी में धार थी। भाई से झगड़ा होने पर मात्र 17 साल की उम्र में बोस्टन छोड़ कर न्यूयॉर्क आ गये और फिर तो अथक
संघर्ष का सिलसिला चलता रहा। लेखन के कारण प्रसिद्धि इतनी मिली कि प्रांत के
गवर्नर भी उनके प्रशंसक हो गए। पाठकों, मित्रों और
प्रशंसकों का आग्रह बना रहा कि बेंजामिन अपनी आत्मकथा लिखें जिससे औरों को भी अपना
जीवन बेहतर करने की सीख मिले। तमाम आग्रहों के बाद बेंजामिन ने अपनी आत्मकथा लिखी
और उस प्रेरक आत्मकथा का वह हिस्सा बहुत महत्वपूर्ण है जहां वे उन तेरह बिन्दुओं
की र्चचा करते हैं जिनका उन्होंने अपने जीवन में योजनाबद्ध अभ्यास किया और बाद में
लाखों लोगों ने अपने चारित्रिक विकास के लिए उसी प्रक्रिया को अपनाया। क्यों न हम
भी उन 13 बिन्दुओं पर नजर डालें- 1 आत्मसंयम इतना न खोयें कि आलस्य आये। इतनी अति न करें कि उसका
नशा हावी हो जाये। 2 मौन बोलता
है, लेकिन ऐसा कुछ न बोलें जो आपके और
दूसरों के लिए नुकसानदायक हो। बेमतलब व विवादों वाली बातचीत से बचें। 3 अपनी चीजों को व्यवस्थित यथा स्थान रखें और अपने काम के हर
हिस्से को उचित समय दें। 4 दृढ़-संकल्प
जो करना चाहते हैं, उसके लिए
दृढ़-संकल्प रहें और जो संकल्प किया है उसे लगकर पूरा करें। 5 किफायत से खर्च उतना ही करें जो अपने और दूसरों की बेहतरी के
लिए जरूरी हो। कुछ भी बर्बाद न करें। 6 समय बर्बाद
न करें। हमेशा किसी उपयोगी काम में व्यस्त रहें। 7 सच्चाई। धोखेबाजी वाले काम न करें। तुरंत अच्छे मन और निष्पक्ष तरीके
से सोचें और जो कुछ कहना है, उसी के
अनुसार कहें। 8
न्यायसंगतता इसी में है कि किसी
को चोट पहुंचा कर अपना फायदा मत करायें। 9 उदारता
इतनी कि किसी भी अति (एक्सट्रीम) से बचें। अपनी नाराजगी के चलते दू सरों को चोट
पहुंचाने की सोच गलत है। 10 साफ-सफाई
शरीर में, कपड़ों में और रहने की जगह में गंदगी
बर्दाश्त न करें। 11 शांत चित्त
से छोटे-मोटे विवादों, दुर्घटनाओं
से बचें। इस तरह डिस्टर्ब नहीं होंगे। अपने को शांत रखें। 12 मोह रखें लेकिन शुचिता के लिए। सिर्फ अपने स्वास्थ्य और लक्ष्य
के प्रति शुचिता रखें न कि आलस्य, कमजोरियों
या दूसरों की शांति के प्रति। 13 जीसस या
सुकरात जैसे महात्माओं का अनुकरण करें। बेंजामिन ने अपने चरित्र को सुधारने के लिए
कागज पर बहुत कुछ लिख डाला लेकिन समझ गए कि इनका अभ्यास किये बिना काम नहीं चलेगा।
उन्होंने हरेक पर कुछ दिन अभ्यास किया ताकि वह उनकी आदत बन जाये। एक के अभ्यस्त
होने के बाद ही दूसरे की ओर बढ़े। तेरह सोपान लिखने के बाद उन्होंने अपना इम्तिहान
खुद लेना शुरू किया। एक नोटबुक बनायी। हर पेज पर सात खड़े कॉलम बनायें और उनमें
सप्ताह के सात दिनों के नाम लिखें, फिर उन्हें
तेरह आड़ी रेखाओं में से बांट दिया, उनमें हर
सोपान का पहला अक्षर लिखा। वे लिखते हैं- ‘हर गलती पर
मैं उस खाने में काला निशान लगाता रहा ताकि पता चल जाये कि मैंने वह गलती सप्ताह
में कितनी बार की। हरेक पर एक सप्ताह तक कड़ाई से ध्यान दिया। पहले सप्ताह में
सिर्फ पहली लाइन में निशान लगाये। इस तरह तेरह सप्ताहों में मेरा कोर्स खत्म हो
गया। मैंने यह क्रम साल भर तक जारी रखने की बात सोची। आने वाले सप्ताहों में मेरी
पिछली लाइनों के काले निशान साफ होते गए। इस तरह 52 सप्ताहों में मैंने एक सोपान पर चार बार ध्यान दिया और हर कोर्स के
बाद अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट देखकर जोश बढ़ता गया। एक साल बाद मेरी नोटबुक पर कोई भी
कला निशान नहीं था।’
बेंजामिन का यह नुस्खा अपने जीवन में उतार कर हम भी अपने आपमें सुधार
ला सकते हैं। तो फिर देर कैसी! 2014 की शुरु आत
है, एक नोटबुक लीजिये। उसमें इसी तरह सप्ताह
के सात दिनों और तेरह सोपानों के कालम बनाइये। आज से ही शुरू कर दें अभ्यास यानी
अपना खुद का इम्तिहान। हर कमी या गलती पर कॉलम में निशान लगायें। जनवरी 2015 में देखेंगे कि आपने अपने आपको कितना इम्प्रूव किया।
बेंजामिन ने अपने चरित्र को सुधारने के लिए कागज पर बहुत कुछ लिख
डाला लेकिन समझ गए कि इनका अभ्यास किये बिना काम नहीं चलेगा। उन्होंने हरेक पर कुछ
दिन अभ्यास किया ताकि वह उनकी आदत बन जाये। एक के अभ्यस्त होने के बाद ही दूसरे की
और बढ़े