टचिंग को भूल गए तो टीचिंग से क्या होगा
जो मेरे पास है वह किसी और के पास न हो, इस दौड़ में हमारी मानसिकता तोड़ने की और दूसरों को दुखी करने की इतनी बढ़ती जा रही है कि खेल के समय भी यही भावना बनी रहती है। हम अपनी पतंग को उड़ाने के लिए नहीं, दूसरे की पतंग काटने के लिए उड़ाते हैं। आसमान तो बहुत बड़ा है। उसमें सभी की पतंगें उड़ सकती हैं। फिर हमें दूसरों की पतंग काटने की जिद क्यों बनी रहती है? शायद इसलिए कि अपनी पतंग कटने पर हर किसी को दुख होता है और दूसरों के दुख से हमें प्यार है।
हमें अपनी मर्सिडीज कार में जंगल के बीच बैठने में वैसा आनंद नहीं आता जैसा भीड़ भड़क्के में अपने परिचितों के बीच खड़ी करने में आता है। क्योंकि हम उन्हें अपनी मर्सिडीज दिखाकर जलाना चाहते हैं। उनकी जलन हमारे सुख का कारण बनती है। अपने अपने हित साधने में और सुविधाओं को अपने अनुरूप आकार देने में हम हर समय कैंची की तरह आस-पास अपने, परायों को काटने का ही काम कर रहे हैं। सुई का धर्म नहीं निबाह रहे हैं। उनसे जुड़ने का कोई प्रयास हम नहीं करते।
अमेरिका में इंजीनियरिंग की एक प्रतियोगी परीक्षा में 10 नंबर का एक प्रश्न यह भी आया था- 'आपके क्लास रूम की सफाई करने वाली महिला का नाम क्या है?' सभी परीक्षार्थियों ने प्रतिवाद किया- 'यह प्रश्न सिलेबस से बाहर का है। और वह भी 10 नंबर का।' परीक्षक ने विस्तार से बताया- केवल टीचिंग ही सिलेबस नहीं होता। वह सब भी जरूरी है जो टचिंग है। 'टचिंग' यानी जो कुछ हृदय को छुए। एक दूसरे से जुड़ाव करे। क्लास रूम की सफाई करने वाली यह प्रौढ़ महिला पिछले 25 साल से हम सबको गंदगी से दूर रखती आ रही है। लेकिन कभी आप में से किसी ने उनका नाम जानने की कोशिश नहीं की। न उन्हें विश ही किया न धन्यवाद दिया। जब आप अपने साथ रहने वाले से, सेवा करने वाले से ही नहीं जुड़ सके तो समाज या देश से कैसे जुड़ेंगे।'
 हम अपनी 25-30 लाख की कार के गैरेज को साफ-सुथरा रखते हैं। लेकिन यह कभी नहीं सोचते कि उस गाड़ी को जो ड्राइवर चलाता है, जिसके हाथों हम अपनी, अपने परिवार की जिंदगी सौंप लंबी-लंबी यात्राएं करते हैं, उसका रहने वाला कमरा क्या ऐसा है कि जिसमें वह भरपूर नींद सो सके? हमारे ड्राइवर की नींद अगर पूरी न हो और कार चलाते चलाते पल भर को ही उसकी झपकी लग जाए तो हमारी कीमती कार, उसके गैरेज और हमारे परिवार का क्या अंजाम होगा? भौतिक सुखों की दौड़ में हम केवल 'टीचिंग' पर ही निर्भर हो गए हैं, 'टचिंग' को भूल गए। हम वस्तुओं से प्यार करने लगे हैं और इंसान का इस्तेमाल। इससे बचना होगा। 
निर्मल जैन

 साभार नवभारत टाइम्स |