विनोबा भावेका चिंतन :
ध्यान का आलंबन है कर्म
सारे काम-धाम (कर्म) छोड़कर साधना करना
ध्यान का आलंबन है कर्म
सारे काम-धाम (कर्म) छोड़कर साधना करना
ध्यान नहींहै। ध्यान के लिए कर्म एक आलंबन का काम करता है। बिना ध्यान के कोई काम
पूरा भी नहींहो सकता। जब ध्यान और कर्म एक साथ सधता है, तब प्रज्ञा उत्पन्न होती है। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन..
पूरा भी नहींहो सकता। जब ध्यान और कर्म एक साथ सधता है, तब प्रज्ञा उत्पन्न होती है। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन..
तस्मात य इह मनुष्याणां महत्तां प्राप्नुवंति,
ध्यानापादांशा इवैव ते भवंति।
जो लोग दुनिया में कोई भी महत्ता प्राप्त करते हैं, वह उनको ध्यान के कारण प्राप्त होती है।
हिमालय जाने के नाम पर मैंने घर छोड़ा, किंतु सौभाग्य
से गांधीजी के पास पहुंच गया। ध्यान आदि के लिए मेरी हिमालय जाने की इच्छा थी,
किंतु गांधीजी के पास मुझे ध्यान का पर्याप्त लाभ मिला। जब हम सेवा
करते हैं, तब हमें ध्यान का मौका मिलता है। जो सेवा की,
वह परमेश्वर की सेवा हुई, ऐसा मानेंगे तो वह
ध्यान-योग होगा। अगर हम यह मानेंगे कि मनुष्य की सेवा हुई, तो
वह सिर्फ सेवा कार्य होगा। उस सेवा कार्य द्वारा परमेश्वर के साथ संपर्क हो रहा है,
ऐसी भावना रही तो वह ध्यान होगा।
से गांधीजी के पास पहुंच गया। ध्यान आदि के लिए मेरी हिमालय जाने की इच्छा थी,
किंतु गांधीजी के पास मुझे ध्यान का पर्याप्त लाभ मिला। जब हम सेवा
करते हैं, तब हमें ध्यान का मौका मिलता है। जो सेवा की,
वह परमेश्वर की सेवा हुई, ऐसा मानेंगे तो वह
ध्यान-योग होगा। अगर हम यह मानेंगे कि मनुष्य की सेवा हुई, तो
वह सिर्फ सेवा कार्य होगा। उस सेवा कार्य द्वारा परमेश्वर के साथ संपर्क हो रहा है,
ऐसी भावना रही तो वह ध्यान होगा।
'साधना कर्मयोगमय होनी चाहिए' का
उपसिद्धांत बिल्कुल यूक्लिड (प्राचीन यूनान का एक प्रसिद्ध गणितज्ञ) की पद्धति से
निष्पादित होता है। कर्म कहते ही दो दोष चिपकने को तत्पर हो जाते हैं- एक कर्मठता
और दूसरा कर्म के पीछे भाग-दौड़। उल्टे 'योग' का नाम लेते ही कर्मशून्य ध्यान-साधना की ओर झुकाव होता है, जो काल्पनिक होती है। कर्माग्रही आत्मा की मूल निष्कर्म भूमिका खो बैठता
है। कर्म छोड़कर काल्पनिक ध्यान के पीछे लगना पैर को तोड़कर रास्ता तय करने की कोशिश
करने के बराबर है। कर्मयोगी इन दोनों दोषों से दूर रहता है। एक भाई ने कहा कि हम
आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ना चाहते हैं, इसलिए ध्यान कर
रहे हैं। हमने कहा कि ध्यान का अध्यात्म के साथ कोई खास संबंध नहीं है, ऐसा हम मानते हैं। कर्म एक शक्ति है, जो अच्छे,
बुरे, स्वार्थ, परार्थ
और परमार्थ के काम में आ सकता है। उसी तरह ध्यान भी एक शक्ति है, जो उन पांचों कामों में आ सकती है। कर्म स्वयं में ही कोई आध्यात्मिक
शक्ति नहीं है, वैसे ही ध्यान भी स्वयमेव कोई आध्यात्मिक
शक्ति नहीं है। कर्म करने के लिए मनुष्य को दस-पांच चीजों की तरफ खूब ध्यान देना
पड़ता है। वह भी एक तरह का विविध ध्यान-योग ही है। चर्खा कातना हो तो इधर पहिए की
तरफ ध्यान देना पड़ता है, तो उधर पूनी खींचने की तरफ। इस
दोहरी प्रक्रिया के साथ-साथ सूत लपेटने की तरफ भी ध्यान देना पड़ता है। तभी सूत
कतता है। बहनों को रसोई का काम करते समय कई बातों की तरफ ध्यान देना पड़ता है। इधर
चावल पक रहा है तो उसे देखना, उधर आटा गूंथना, रोटी बेलना, सेंकना, तरकारी
काटना, लकड़ी ठीक से जल रही है या नहीं, यह देखना। इसमें भी विविध ध्यान-योग है।
उपसिद्धांत बिल्कुल यूक्लिड (प्राचीन यूनान का एक प्रसिद्ध गणितज्ञ) की पद्धति से
निष्पादित होता है। कर्म कहते ही दो दोष चिपकने को तत्पर हो जाते हैं- एक कर्मठता
और दूसरा कर्म के पीछे भाग-दौड़। उल्टे 'योग' का नाम लेते ही कर्मशून्य ध्यान-साधना की ओर झुकाव होता है, जो काल्पनिक होती है। कर्माग्रही आत्मा की मूल निष्कर्म भूमिका खो बैठता
है। कर्म छोड़कर काल्पनिक ध्यान के पीछे लगना पैर को तोड़कर रास्ता तय करने की कोशिश
करने के बराबर है। कर्मयोगी इन दोनों दोषों से दूर रहता है। एक भाई ने कहा कि हम
आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ना चाहते हैं, इसलिए ध्यान कर
रहे हैं। हमने कहा कि ध्यान का अध्यात्म के साथ कोई खास संबंध नहीं है, ऐसा हम मानते हैं। कर्म एक शक्ति है, जो अच्छे,
बुरे, स्वार्थ, परार्थ
और परमार्थ के काम में आ सकता है। उसी तरह ध्यान भी एक शक्ति है, जो उन पांचों कामों में आ सकती है। कर्म स्वयं में ही कोई आध्यात्मिक
शक्ति नहीं है, वैसे ही ध्यान भी स्वयमेव कोई आध्यात्मिक
शक्ति नहीं है। कर्म करने के लिए मनुष्य को दस-पांच चीजों की तरफ खूब ध्यान देना
पड़ता है। वह भी एक तरह का विविध ध्यान-योग ही है। चर्खा कातना हो तो इधर पहिए की
तरफ ध्यान देना पड़ता है, तो उधर पूनी खींचने की तरफ। इस
दोहरी प्रक्रिया के साथ-साथ सूत लपेटने की तरफ भी ध्यान देना पड़ता है। तभी सूत
कतता है। बहनों को रसोई का काम करते समय कई बातों की तरफ ध्यान देना पड़ता है। इधर
चावल पक रहा है तो उसे देखना, उधर आटा गूंथना, रोटी बेलना, सेंकना, तरकारी
काटना, लकड़ी ठीक से जल रही है या नहीं, यह देखना। इसमें भी विविध ध्यान-योग है।
ध्यान करते समय हम अनेक चीजों की तरफ से ध्यान हटाकर एक ही चीज की
तरफ ध्यान देते हैं। जैसे अनेक चीजों की तरफ एक साथ ध्यान देना एक शक्ति है, वैसे ही एक ही चीज की तरफ ध्यान देना, यह भी एक
शक्ति है।
तरफ ध्यान देते हैं। जैसे अनेक चीजों की तरफ एक साथ ध्यान देना एक शक्ति है, वैसे ही एक ही चीज की तरफ ध्यान देना, यह भी एक
शक्ति है।
लोगों के मन में अक्सर एक गलतफहमी रही है कि कर्म करना सांसारिकों का
काम है और ध्यान करना अध्यात्म की चीज है। इस गलत खयाल को मिटाना बहुत जरूरी है।
काम है और ध्यान करना अध्यात्म की चीज है। इस गलत खयाल को मिटाना बहुत जरूरी है।
अगर ध्यान का अध्यात्म से संबंध जोड़ा जाए, तो वह आध्यात्मिक है। हमने खेत में कुदाल चलाई, कुआं
खोदने का काम किया, कताई, बुनाई,
रसोई, सफाई आदि तरह-तरह के काम भी किए। बचपन
में हमारे पिताजी ने हमसे रंगने का काम, चित्रकला, होजरी वगैरह के काम भी करवाए थे। वह सब करते समय हमारी यही भावना थी कि हम
इस रूप में एक उपासना कर रहे हैं। इसमें हम अपने को मानवमात्र के साथ, कुदरत के साथ जोड़ते थे और इन सबका केंद्र स्थान, जो
परमात्मा कहलाता है, उसके साथ भी जोड़ते थे। यह हमारा अनुभव
है।
खोदने का काम किया, कताई, बुनाई,
रसोई, सफाई आदि तरह-तरह के काम भी किए। बचपन
में हमारे पिताजी ने हमसे रंगने का काम, चित्रकला, होजरी वगैरह के काम भी करवाए थे। वह सब करते समय हमारी यही भावना थी कि हम
इस रूप में एक उपासना कर रहे हैं। इसमें हम अपने को मानवमात्र के साथ, कुदरत के साथ जोड़ते थे और इन सबका केंद्र स्थान, जो
परमात्मा कहलाता है, उसके साथ भी जोड़ते थे। यह हमारा अनुभव
है।
ध्यान और कर्म परस्पर पूरक शक्तियां हैं। कर्म के लिए दस-बीस
क्रियाएं करनी होती है, यानी उन सबका ध्यान करना पड़ता है। ध्यान में सब
वस्तुओं को छोड़कर एक ही चीज का ध्यान किया जाता है। पचासों चीजों का ध्यान किया
जाए, तो कर्म-शक्ति विकसित होती है और एक ही चीज पर एकाग्र
होने से ध्यान-शक्ति विकसित होती है। जैसे कर्म के लिए अनेक वस्तुओं का खयाल करना
पड़ता है, वैसे ही ध्यान के लिए एक ही वस्तु का करना पड़ता है।
दोनों पूरक शक्तियां हैं। घड़ी में अनेक पुर्जे होते हैं, उनको
अलग-अलग कर दिया जाए, तो आपकी कर्म-शक्ति सध गई। पुर्र्जो को
तो बच्चे भी अलग-अलग कर देते हैं, लेकिन एकत्र कर सही जगह
लगाना कठिन है। पुर्र्जो को अलग करना और एक करना, इन दो
प्रक्रियाओं में से एक कर्म की और दूसरी ध्यान की प्रक्रिया है। जब दोनों
प्रक्रियाएं सधती हैं, तब प्रज्ञा बनती है, जो निर्णयकारी होती है।
क्रियाएं करनी होती है, यानी उन सबका ध्यान करना पड़ता है। ध्यान में सब
वस्तुओं को छोड़कर एक ही चीज का ध्यान किया जाता है। पचासों चीजों का ध्यान किया
जाए, तो कर्म-शक्ति विकसित होती है और एक ही चीज पर एकाग्र
होने से ध्यान-शक्ति विकसित होती है। जैसे कर्म के लिए अनेक वस्तुओं का खयाल करना
पड़ता है, वैसे ही ध्यान के लिए एक ही वस्तु का करना पड़ता है।
दोनों पूरक शक्तियां हैं। घड़ी में अनेक पुर्जे होते हैं, उनको
अलग-अलग कर दिया जाए, तो आपकी कर्म-शक्ति सध गई। पुर्र्जो को
तो बच्चे भी अलग-अलग कर देते हैं, लेकिन एकत्र कर सही जगह
लगाना कठिन है। पुर्र्जो को अलग करना और एक करना, इन दो
प्रक्रियाओं में से एक कर्म की और दूसरी ध्यान की प्रक्रिया है। जब दोनों
प्रक्रियाएं सधती हैं, तब प्रज्ञा बनती है, जो निर्णयकारी होती है।
व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता है, लेकिन उससे भी अधिक
महत्व की चीज है, हमारा सब काम ध्यानस्वरूप होना चाहिए।
मिसाल के तौर पर बाबा (स्वयं के लिए) रोज घंटा, डेढ़ घंटा
कभी-कभी ढाई घंटे तक सफाई करता है। सफाई में एक-एक तिनका, पत्ती,
कचरा उठाता है और टोकरी में डालता है। परंतु बाबा को जो अनुभव आता
है, वह सुंदर ध्यान का अनुभव आता है। माला लेकर जप करेगा तो
जो अनुभव आएगा, उससे किसी प्रकार से कम या अलग अनुभव नहीं,
बल्कि ऊंचा ही है। एक-एक तिनका उठाना और उसके साथ नाम-स्मरण करना।
मैं कभी-कभी गिनता हूं। आज 1225 तिनके उठाए। उसमें मन काम
नहीं करता। वह एक ध्यान-योग ही है। यह मानकर चलिए कि जो आदमी बाहर जरा भी कचरा सहन
नहीं करता, वह अंदर का कचरा भी सहन नहीं करेगा। उसे अंदर का
कचरा निकालने की जोरदार प्रेरणा मिलेगी। यह आध्यात्मिक परिणाम है। हर एक को ऐसी
प्रेरणा मिलेगी ही, ऐसा नहीं कह सकते। लेकिन तन्मय होकर कोई
यह काम करेगा, तो उसे ध्यान-योग सध सकता है।
महत्व की चीज है, हमारा सब काम ध्यानस्वरूप होना चाहिए।
मिसाल के तौर पर बाबा (स्वयं के लिए) रोज घंटा, डेढ़ घंटा
कभी-कभी ढाई घंटे तक सफाई करता है। सफाई में एक-एक तिनका, पत्ती,
कचरा उठाता है और टोकरी में डालता है। परंतु बाबा को जो अनुभव आता
है, वह सुंदर ध्यान का अनुभव आता है। माला लेकर जप करेगा तो
जो अनुभव आएगा, उससे किसी प्रकार से कम या अलग अनुभव नहीं,
बल्कि ऊंचा ही है। एक-एक तिनका उठाना और उसके साथ नाम-स्मरण करना।
मैं कभी-कभी गिनता हूं। आज 1225 तिनके उठाए। उसमें मन काम
नहीं करता। वह एक ध्यान-योग ही है। यह मानकर चलिए कि जो आदमी बाहर जरा भी कचरा सहन
नहीं करता, वह अंदर का कचरा भी सहन नहीं करेगा। उसे अंदर का
कचरा निकालने की जोरदार प्रेरणा मिलेगी। यह आध्यात्मिक परिणाम है। हर एक को ऐसी
प्रेरणा मिलेगी ही, ऐसा नहीं कह सकते। लेकिन तन्मय होकर कोई
यह काम करेगा, तो उसे ध्यान-योग सध सकता है।
काम करते समय ध्यान होना ही चाहिए। तस्मात य इह मनुष्याणां महत्तां
प्राप्नुवंति, ध्यानापादांशा इवैव ते भवंति। जो लोग दुनिया में कोई
भी महत्ता प्राप्त करते हैं, वह उनको ध्यान के कारण प्राप्त
होती है। कबीर ने वर्णन किया है- माला तो कर में फिरे यानी हाथ में माला घूम रही
है, मुख में जबान घूम रही है और चित्त दुनिया में घूम रहा
है। ध्यान के लिए आलंबन चाहिए। हमारा काम ही ध्यान के लिए आलंबन है।
Vinoba Bhave contemplation of meditation, karma mount 11070814प्राप्नुवंति, ध्यानापादांशा इवैव ते भवंति। जो लोग दुनिया में कोई
भी महत्ता प्राप्त करते हैं, वह उनको ध्यान के कारण प्राप्त
होती है। कबीर ने वर्णन किया है- माला तो कर में फिरे यानी हाथ में माला घूम रही
है, मुख में जबान घूम रही है और चित्त दुनिया में घूम रहा
है। ध्यान के लिए आलंबन चाहिए। हमारा काम ही ध्यान के लिए आलंबन है।