मैं बहरा था, बहरा हूँ और बहरा
रहूँगा
एक बार एक सीधे पहाड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता हुई, जिसमें बहुत लोगों ने हिस्सा लिया। प्रतियोगिता को देखने वालों की हर जगह
भीड़ जमा हो गयी। माहौल में सरगर्मी थी, हर तरफ शोर ही
शोर था। प्रतियोगियों ने चढ़ना शुरू किया। लेकिन सीधे पहाड़ को देखकर भीड़ में एकत्र
हुए किसी भी आदमी को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी व्यक्ति चोटी तक पहुंच पाएगा।
हर तरफ यही सुनाई देता, “अरे ये बहुत कठिन है। ये लोग कभी भी सीधे पहाड़ पर
नहीं चढ़ पाएंगे, सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं, इतने सीधे पहाड़ पर तो चढ़ा ही नहीं जा सकता और यही हो भी रहा था, जो भी आदमी कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर
जाता, कई लोग दो-तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में
लगे हुए थे। लेकिन भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी, ये
नहीं हो सकता, असंभव और वो उत्साहित प्रतियोगी भी ये
सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास धीरे धीरे करके छोड़ने लगे।
लेकिन उन्हीं लोगों के बीच एक प्रतियोगी था, जो बार-बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर पहाड़ पर चढ़ने में लगा हुआ था।
वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह सीधे पहाड़ के ऊपर पहुंच गया और इस
प्रतियोगिता का विजेता बना। उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, सभी लोग उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे, तुमने
ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हें अपना लक्ष्य
प्राप्त करने की शक्ति कहां से मिली, जरा हमें भी तो बताओ कि
तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?
तभी पीछे से एक आवाज आई कि अरे उससे
क्या पूछते हो, वो तो बहरा है तभी उस व्यक्ति ने कहा कि हर
नकारात्मक बात के लिए- "मैं बहरा था, बहरा हूं और बहरा
रहूंगा।"
- सफलता प्राप्त करने के लिए नकारात्मक विचारों और आवाजों को
अनसुना कर दें।