सामाजिक समरसता के गायक

डॉ. प्रीति शर्मा

महात्मा गांधी के बेहद प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेणे कहिएके रचनाकार संत कवि नरसी मेहता या नरसिंह मेहता का भक्त कवियों में बहुत अहम स्थान है। हिंदी साहित्य में जो स्थान कृष्णभक्त कवि सूरदास का है, गुजराती साहित्य में वही स्थान नरसिंह मेहता का है। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व की असाधारणता का पता इसी बात से चलता है कि साहित्य के इतिहास-ग्रंथों में नरसिंह-मीरा युगनाम से एक अलग काव्यकाल का निर्धारण किया गया है, जिसकी मुख्य विशेषता श्रीकृष्ण की भक्ति के पदों की रचना है। उनके जन्म के समय को लेकर विवाद है और उसके बारे में बहुत निश्चय के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन ज्यादातर इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है कि उनका जन्म जूनागढ़ के पास स्थित तलाजा गांव में सन 1414 में हुआ था। नरसिंह मेहता की प्रवृत्ति शुरू से ही संतों की-सी थी। मातापिता उनके बचपन में चल बसे, इसलिए अपने चचेरे भाई के साथ रहते थे। अकसर संतों की मंडलियों के साथ घूमा करते थे और 15-16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया। ईश्वर की भक्ति में ऐसे रमे रहते कि किसी काम में मन ही नहीं लगता। कोई काम न करने पर भाभी उन पर बहुत ताने मारती थी। एक दिन उसकी फटकार से व्यथित नरसिंह गोपेश्वर के शिव मंदिर चले गए और वहीं तपस्या करने लगे। मान्यता है कि सात दिन के बाद उन्हें शिव के दर्शन हुए। नरसिंह ने औघड़दानी शिव से कृष्णभक्ति और रासलीला के दर्शनों का वरदान मांगा। उन्हें शिवजी का वरदान मिला और द्वारका में जाकर रासलीला के दर्शन हो गए।

अब नरसिंह का जीवन पूरी तरह से बदल गया। भाई का घर छोड़ कर वह जूनागढ़ में अलग रहने लगे। उनका निवास स्थान आज भी नरसिंह मेहता का चौराके नाम से प्रसिद्ध है। वह बहुत ही निर्धन थे। निर्धनता के अलावा उन्हें अपने जीवन में पत्नी और पुत्र के मृत्यु का दुख भी झेलना पड़ा था। सबके बावजूद कृष्णभक्ति ही उनके जीवन का उद्देश्य था। उनके लिए सारे मनुष्य समान थे। न जाति-धर्म का कोई भेद और न ऊंच-नीच का कोई भेद। छुआछूत वे नहीं मानते थे और दलितों की बस्ती में जाकर उनके साथ कीर्तन किया करते थे। इससे बिरादरी ने उनका बहिष्कार तक कर दिया, पर वह अपने पथ से कभी नहीं डिगे। नरसिंह मेहता के बारे में कई किंवदंतियां भी प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि कई बार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी मदद की थी। एक बार जब जूनागढ़ के राजा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो कीर्तन में मग्न नरसिंह के गले मे माला पड़ गई। उन्होंने गुजराती में कई कालजयी कृतियों की रचना की है। सुदामा चरित’, ‘गोविन्द गमन’, ‘दाणलीला’, ‘चातुरियो’, ‘सुरत संग्राम’, ‘राससहस्र पदी’, ‘श्रृंगार माला’, ‘वंसतनापदोऔर कृष्णजन्मसमेनां पदोआदि उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं। नरसिंह मेहता का निधन सन् 1480 ईस्वी में माना जाता है।