छठ अनुष्ठान के
मूल में नारी सशक्तीकरण
छठ अनुष्ठान के मूल में नारी सशक्तीकरण
है। सूर्य की उपासना में कृपालु छठी माई के आशीष के बिना तो यह अनुष्ठान पूरा ही
नहीं हो सकता। यह मातृ शक्ति के प्रति श्रद्धा है। छठ ही ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें बेटी की कामना की जाती है।
छठी माई के
मनुहार में गाए जाने वाले गीतों में इसकी स्पष्ट झलक मिलती है। इनमें एक है- 'रुनकी-झुनकी धीया एक मांगी ला, मांगी ला पढ़ल पंडित
दामाद हे छठी मइया.।' इस गीत में पुत्री की कामना के साथ
लिंगानुपात संतुलन और सुशिक्षित समाज की भी कामना की गई है। मूलत: सूर्योपासना के
इस अनुष्ठान में छठी माई को प्रतिष्ठापित करना भी महिला सशक्तीकरण ही है। कालांतर
में इस लोकपर्व में भगवान सूर्य की बहन षष्ठी (छठी माई) की महिमा को इस कदर महत्व
दिया कि इस महापर्व का नाम आम जुबान पर छठ ही आता है। भाई सूर्य केंद्र में हैं और
सारा आयोजन बहन षष्ठी के इर्द-गिर्द घूमता है। यह इस संदेश को भी बल देता है कि
समाज में स्त्री-पुरुष समान हैं। यदि सूर्य सर्वशक्तिमान हैं, तो बगैर षष्ठी की कृपा के जनकल्याण नहीं हो सकता।
यह आयोजन
स्वस्थ और संतुलित जीवन के लिए नए सूरज के मनुहार का है। करोड़ों आंखें उस सूरज की
राह तकती हैं। व्रती मनुहार करती गीत गाती हैं-उग हो सूरुज देव भइले अरघ के बेर।
हे भगवान भास्कर उदित होइए, अर्घ्य का समय हो गया है। पूर्व दिशा के आकाश में
पसरती लालिमा हृदय को रोमांचित करती है। फिर सूरज देव के दर्शन से जैसे जीवन जगमग
हो जाता है, नई स्फूर्ति के साथ। बिल्कुल नया विहान।
छीजते सामाजिक
सरोकार में यह आयोजन स्थापित इस कथन को मिथक साबित करता है कि 'उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं।' छठ ऐसा आयोजन
है, जिसमें डूबते और उगते सूर्य की महिमा समान है। यह अनादि
काल तक चलने वालेजीवन चक्त्र को इंगित करता अनुष्ठान है- सांझ से विहान की ओर। इस
अनुष्ठान को लोक आस्था का महापर्व भी कहा जाता है। यह बीमार शरीर को निरोग करने का
महाआयोजन है। खासकर नेत्र, चर्म और उदर रोग के लिए। यही मूल
आधार भी है। प्राकृतिक चिकित्सा में सूर्य की किरणों के महत्व ने इसे और बल दिया।
गौर करें तो यह मूलत: मेहनतकशों का आयोजन है। पृथ्वी पर जीवन का संचार करने वाले
सूर्य के लिए वह सबकुछ अर्पण करने का विधान, जिसमें धार्मिक
आस्था भी पैबस्त है। इसी कारण इस अनुष्ठान ने ज्यादा विस्तार लिया। क्या गरीब,
क्या अमीर, क्या मेहनतकश और क्या शासक वर्ग
सबने इसे अपना लिया। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के मेहनतकश निरोग काया के लिए सूर्य
की उपासना करते हैं।
सूर्यदेव के
मनुहार में अपनी मेहनत से उपजाये अन्न, फल, शाक, दूध-घी आदि प्रसाद के रूप में अर्पण कर निरोग
काया के साथ सुख और संपन्नता का आशीर्वाद मांगते हैं। चूंकि सूर्यदेव की कृपा
चमत्कारिक है, अतएव लोगों ने अन्य कामनाओं को भी जोड़ दिया।
इसलिए वैभव के साथ पुत्र-पुत्री, दामाद की कामना होती है।
आज 'स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत' की
कवायद जोरों पर है। हमारी संस्कृति में यह पूर्व से विद्यमान है। छठ का आयोजन भी
यही सीख देता है। छठ की बुनियाद ही है स्वच्छता। जहां व्रत होता है उस घर के लोग
ही नहीं पास-पड़ोस भी इस अभियान में स्वेच्छा से जुट जाता है। व्रती के रास्ते तक
को धोने की कोशिश होती है। जहां सूर्य मंदिर हैं, वहां जलाशय
से मंदिर तक की सड़कें धो दी जाती हैं। कई व्रती जलाशय में स्नान कर दंडवत (शरीर से
मंदिर तक का रास्ता नापते) मंदिर तक पहुंचते हैं। प्रसाद की वस्तुओं को भी
जांच-परख कर संजोया जाता है। शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। जाहिर है,
जब स्वच्छ रहेंगे, शुद्ध खाएंगे तो स्वास्थ्य
भी बना रहेगा।
साभार दैनिकजागरण