समस्याओं के बड़ा बनने से पहले उठाएं कदम


समस्याएं आती हैं और परेशान भी करती हैं। कोई भी उनसे पूरी तरह बच नहीं सकता। पर कुछ लोगों को समस्याएं ज्यादा ही घेरे रखती हैं। ज्यादातर मामलों में बात भी बड़ी नहीं होती, वे ही उसे बड़ा बना देते हैं। जानिए कैसे
बहुत कम समस्याएं होती हैं, जो शुरुआत में ही बड़ी होती हैं। वरना ज्यादातर बातें शुरू में छोटी ही होती हैं। कभी हम अपने आलस, टाल-मटोल या लापरवाही से उन्हें बढ़ा देते हैं, जैसे बिल समय पर ना देना या फिर शुरू में ही बीमारी या सामान की टूट-फूट ठीक ना कराना। तो कुछ बातें हमारी बिना सोचे-समझे दी गई प्रतिक्रियाओं के कारण बड़ी हो जाती हैं।
यह एक बड़ा सच है कि समस्या हमारे अपने रवैये में भी कम नहीं होती। कुछ बातों का बड़ा होना हम झेल लेते हैं, इसलिए उन्हें बार-बार करने से बाज नहीं आते। पर कुछ बिगड़ चुकी बातों को ठीक करने में समय लग जाता है। कई बार बात संभलती ही नहीं। तब केवल अफसोस रह जाता है कि काश, उस समय थोड़ा सोच लेते, तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते या थोड़ी सी चतुराई से चीजों को वापस ठीक कर लेते। 

मनोविज्ञान कहता है कि तनाव के दौरान हम खुद पर से संतुलन खोने लगते हैं। जैसे ही मन को खुला छोड़ते हैं तो वह अपनी ही धुन में सोचने-समझने लगता है। कभी अहं तो कभी असुरक्षा की भावना सूझ-बूझ के आड़े आ जाते हैं। इस तरह हम डर, तनाव और चिंता के चक्र में खुद को घेर लेते हैं।
लेखक और शिक्षाविद् चार्ल्स आर स्विंडल कहते हैं, ‘जीवन में असल तो 10 प्रतिशत ही होता है, 90 प्रतिशत हमारी प्रतिक्रिया होती है। हमारे नजरिए का बड़ा असर पड़ता है। यहां तक कि बीते समय में क्या हुआ, शिक्षा, पैसा, कौशल, सफलता, असफलता और किसी भी ऐसे हालात से भी ज्यादा बड़ा असर हमारे नजरिए और प्रतिक्रिया का होता है।’  
हमारा चिंतित मन ना ढंग से सोच पाता है, ना दूसरे की सुन-समझ पाता है। वह एक बात को दूसरी से जोड़ने लगता है। अपनी ही पिछली कहानियां और पूर्वाग्रह दोहराने लगता है। और फिर हमारा यही नजरिया, हमारी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने लगता है।
निक डालिंगटन यायावर, उद्यमी और लेखक हैं। उनके अनुसार, ‘समस्या के समय जो लोग केवल दूसरों को या अपने हालात को दोष देते हैं, वे ज्यादातर भावनाओं में बहकर गलत फैसले लेते हैं। वहीं जो जिम्मेदारी लेते हैं, वे बुरे हालात में भी राह बना लेते हैं। विकल्पों को सीमित नहीं होने देते।’ 
ऐसा नहीं है कि समस्या होती ही नहीं। सामने वाले पक्ष की मजबूरियां, आग्रह या दुराग्रह हो सकते हैं। पर ये भी जरूरी नहीं कि जो आप देख रहे हैं, वो ही एकमात्र सच हो। उसकी मंशा पूरी तरह गलत हो। हो भी तो भी ये ध्यान रखना ही चाहिए कि आपका हित किसमें है? हो सकता है कि आपको बुरा लग रहा हो। शर्मिंदगी या तंग किए जाने का बोध हो। यहां तक कि गुस्सा आने या रो लेने में भी बुराई नहीं। पर एक कदम पीछे रखकर ये सोचना भी जरूरी है कि क्या स्थिति वैसी ही है जैसा आपको लग रहा है? चिंतक एकहार्ट टोल सटीक बात कहते हैं, ‘कृतज्ञता का भाव आपसी विश्वास और प्यार  को बनाए रखता है।यूं भी हमारी प्रतिक्रियाएं बिगड़ती ही तभी हैं, जब हमारा खुद पर या दूसरों पर भरोसा कम होने लगता है। 
सामने वाला जो दे रहा है, यह उसकी समस्या है, पर ये विकल्प तो आपके पास है कि आप उसे कैसे लें।अपनी इस ताकत को अपने पास रखना ही चाहिए। ये होशियारी और माद्दा रखें कि देर-सवेर चीजें संभल ही जाएंगी। रही बात अहं की, तो बड़ों के सामने विनम्र होना, छोटों के लिए उदार हो जाना और गलती समझ आने पर माफी देना या मांग लेना हर समस्या को ठीक कर देता है। 
बिगड़ेगी नहीं बात 
  • तुरंत कुछ भी कहने से बचें। नहीं बोलना दिक्कत नहीं करता, जितना कि आवेश में बोल बैठना। 
  • कुछ देर गहरे सांस लें। हृदयगति सामान्य होने दें।
  • कुछ देर के लिए उस जगह से हट जाएं। खुले में समय बिताएं। कुछ मनपसंद खाएं या पिएं।
  • अपने विचार को बदलें। मन में अगर केवल गलत बात आ रही है तो हालात या व्यक्ति से जुड़ी अच्छी बात सोचें। 
  • बड़ी तस्वीर देखें। दूसरों को समझने की कोशिश करें। नतीजे और विकल्पों पर ढंग से सोच लें।
  • रुख लचीला रखें। गलती हो तो मानने में देरी ना करें।  

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