बच्चों के सपनों को साकार
करती है मां
बच्चे की पहली सहायक, पहली अध्यापिका, पहली ट्रेनर, पहली दोस्त, पहली
मार्गनिर्देशक मां ही होती है। यही वजह है कि अपने बच्चे को वे सबसे अधिक समझती
है। बच्चे के लिए वह एक काउंसलर की तरह भूमिका निभाती है। हर कदम पर बच्चे को
संभालती है।
मां उस कुम्हार की तरह है, जो दोनों
हाथों से बर्तनों को नया रूप देती है। यदि उसे एक हाथ थपथपाता है, तो दूसरा ढालता भी है। उसकी थपथपाहट में भी बर्तनों को सु-आकार देने की
कोशिश रहती है। अगर कोई भी बच्चा जीवन में कुछ भी अच्छा करता है तो इसलिए क्योंकि
एक मां स्वयं की परवाह किए बिना बच्चे के सपनों को साकार करने में जुटी रहती है।
बच्चे की रुचियों को वो अपनी प्राथमिकता बना लेती है। उसके सपनों को ही अपना सपना
समझती है, जिन्हें पूरा करने में वो दिन-रात एक कर देती है।
हर पल ये सोचती है कि आखिर किस तरह से वो बच्चे की मदद कर सकती है। एक मां के तौर
पर आप अपने बच्चे की और मदद करना चाहती हैं, तो इन टिप्स को
आजमाएं।
हौसले न हों पस्त कभी...
कई बार बच्चे माता-पिता के दबाव में या फिर अपने दोस्तों की वजह से किसी खास स्ट्रीम का चयन कर लेते हैं। उनकी रुचि उस विषय में न होने के कारण वे लगातार पिछड़ते चले जाते हैं। अच्छा न कर पाने की वजह से अभिभावकों के दबाव के कारण वे अपना आत्मविश्वास भी खोने लगते हैं। झारखंड, रांची में रहने वाले पीटर के मुताबिक उनकी मां ने कम पढ़ा—लिखा होने के बावजूद अपने छह बच्चों की परवरिश की। पीटर के पिता ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया था। मां लोगों के घरों में नौकरानी और दफ्तरों में झाडू—पोंछे का काम करती थी। उसकी कमाई ज्यादा नहीं थी। सभी बच्चों के स्कूल की फीस भरना उसके लिए मुश्किल था। अक्सर उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था। मां के लिए घर का किराया देना ही बड़ी चुनौती थी। इन सारी मुश्किलों के बावजूद मां ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उसने बच्चों को सिखाया कि अपनी बराबरी दूसरों से न करें। अगर वह अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में डटी न रहती, तो शायद ही वे जिंदगी के उस मुश्किल दौर से गुजर पाते।
कई बार बच्चे माता-पिता के दबाव में या फिर अपने दोस्तों की वजह से किसी खास स्ट्रीम का चयन कर लेते हैं। उनकी रुचि उस विषय में न होने के कारण वे लगातार पिछड़ते चले जाते हैं। अच्छा न कर पाने की वजह से अभिभावकों के दबाव के कारण वे अपना आत्मविश्वास भी खोने लगते हैं। झारखंड, रांची में रहने वाले पीटर के मुताबिक उनकी मां ने कम पढ़ा—लिखा होने के बावजूद अपने छह बच्चों की परवरिश की। पीटर के पिता ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया था। मां लोगों के घरों में नौकरानी और दफ्तरों में झाडू—पोंछे का काम करती थी। उसकी कमाई ज्यादा नहीं थी। सभी बच्चों के स्कूल की फीस भरना उसके लिए मुश्किल था। अक्सर उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था। मां के लिए घर का किराया देना ही बड़ी चुनौती थी। इन सारी मुश्किलों के बावजूद मां ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उसने बच्चों को सिखाया कि अपनी बराबरी दूसरों से न करें। अगर वह अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में डटी न रहती, तो शायद ही वे जिंदगी के उस मुश्किल दौर से गुजर पाते।
उसके हुनर को पहचानें
एक मां जानती है कि उसका बच्चा कैसे व किन चीजों में रुचि ले रहा है। उसकी पसंद-नापसंद का उसे पूरा ध्यान होता है। वह जब भी कुछ करना चाहे तो बस सलीके से उसे करने के गुर मां सिखा सकती हैं। कभी भी अपने अधूरे रह गए सपनों को बच्चों के जरिए पूरा करने का दबाव उन पर नहीं बनाना चाहिए। इससे बच्चा प्राकृतिक रूप से कुछ करना भी चाहेगा, तो उसे नहीं कर सकेगा और ताउम्र खुद को नालायक समझता रहेगा। बस आपको यह देखना होगा कि बच्चा क्या करने में रुचि लेता है। उसे इतना समझाना चाहिए कि वह जो भी करे, मन लगा कर अपना 100 फीसदी देने की कोशिश करते हुए करे। बच्चे को सुपरकिड समझने की भूल न करें।
एक मां जानती है कि उसका बच्चा कैसे व किन चीजों में रुचि ले रहा है। उसकी पसंद-नापसंद का उसे पूरा ध्यान होता है। वह जब भी कुछ करना चाहे तो बस सलीके से उसे करने के गुर मां सिखा सकती हैं। कभी भी अपने अधूरे रह गए सपनों को बच्चों के जरिए पूरा करने का दबाव उन पर नहीं बनाना चाहिए। इससे बच्चा प्राकृतिक रूप से कुछ करना भी चाहेगा, तो उसे नहीं कर सकेगा और ताउम्र खुद को नालायक समझता रहेगा। बस आपको यह देखना होगा कि बच्चा क्या करने में रुचि लेता है। उसे इतना समझाना चाहिए कि वह जो भी करे, मन लगा कर अपना 100 फीसदी देने की कोशिश करते हुए करे। बच्चे को सुपरकिड समझने की भूल न करें।
प्रोत्साहित करते रहें हमेशा
कौशांबी, गाजियाबाद में रहने वाले राकेश कुमार कहते हैं, ‘जब मैं घर पर नहीं रहता तो मुझे किसी बात की फिक्र नहीं होती, क्योंकि मुझे भरोसा है कि मेरी पत्नी बच्चों की अच्छी तरह देखभाल करेगी। जब भी बच्चों को कोई प्रोजेक्ट बनाना होता है तो उनके लिए सामग्री एकत्र करना जैसे सभी काम मेरी पत्नी ही करती हैं। जहां भी वे अटकते हैं तो वह उन्हें बताती है कि इसे बेहतर ढंग से कैसे किया जा सकता है। अगर उससे नहीं हो पाता तो वह उन्हें बताती है कि कैसे कंप्यूटर या किसी विशेषज्ञ की मदद ले सकते हैं। इसका सीधा असर यह होता है कि जब भी वे ऐसी समस्या में पड़ते हैं तो उनका आत्मविश्वास कहीं कम नहीं होता। वे खुद ही अपनी मम्मी को बताने लगते हैं कि मम्मा हमें क्या करना चाहिए। मैं उसकी मदद के लिए उसका शुक्रगुजार हूं और बच्चों को जता देता हूं कि उन्हें अपनी मां का वैसा ही आदर करना चाहिए, जैसा वे मेरा करते हैं।’
कौशांबी, गाजियाबाद में रहने वाले राकेश कुमार कहते हैं, ‘जब मैं घर पर नहीं रहता तो मुझे किसी बात की फिक्र नहीं होती, क्योंकि मुझे भरोसा है कि मेरी पत्नी बच्चों की अच्छी तरह देखभाल करेगी। जब भी बच्चों को कोई प्रोजेक्ट बनाना होता है तो उनके लिए सामग्री एकत्र करना जैसे सभी काम मेरी पत्नी ही करती हैं। जहां भी वे अटकते हैं तो वह उन्हें बताती है कि इसे बेहतर ढंग से कैसे किया जा सकता है। अगर उससे नहीं हो पाता तो वह उन्हें बताती है कि कैसे कंप्यूटर या किसी विशेषज्ञ की मदद ले सकते हैं। इसका सीधा असर यह होता है कि जब भी वे ऐसी समस्या में पड़ते हैं तो उनका आत्मविश्वास कहीं कम नहीं होता। वे खुद ही अपनी मम्मी को बताने लगते हैं कि मम्मा हमें क्या करना चाहिए। मैं उसकी मदद के लिए उसका शुक्रगुजार हूं और बच्चों को जता देता हूं कि उन्हें अपनी मां का वैसा ही आदर करना चाहिए, जैसा वे मेरा करते हैं।’
शिष्टाचार सिखाएं
इन दिनों अक्सर देखा जाता है कि घर में किसी मेहमान के आने पर माता-पिता कहते हैं,‘बेटा अंकल को हैलो या नमस्ते कहो’ आदि। कभी वे आधे-अधूरे मन से आपकी बात मानते हैं, कभी नहीं। मगर उनके बेहतर कल के लिए उन्हें कुछ ऐसा करने को कहें कि वे खुद ही लोगों से न सिर्फ घुलने में सहज महसूस करें, बल्कि समय के अनुसार शिष्टाचार को भी न भूलें। शिष्टाचार के गुण को उन्होंने अगर सीख लिया तो जीवन में तरक्की की राह में कभी कोई रोड़ा नहीं आएगा। इस गुण के कारण वे हमेशा दूसरों से एक कदम आगे रहेंगे।
इन दिनों अक्सर देखा जाता है कि घर में किसी मेहमान के आने पर माता-पिता कहते हैं,‘बेटा अंकल को हैलो या नमस्ते कहो’ आदि। कभी वे आधे-अधूरे मन से आपकी बात मानते हैं, कभी नहीं। मगर उनके बेहतर कल के लिए उन्हें कुछ ऐसा करने को कहें कि वे खुद ही लोगों से न सिर्फ घुलने में सहज महसूस करें, बल्कि समय के अनुसार शिष्टाचार को भी न भूलें। शिष्टाचार के गुण को उन्होंने अगर सीख लिया तो जीवन में तरक्की की राह में कभी कोई रोड़ा नहीं आएगा। इस गुण के कारण वे हमेशा दूसरों से एक कदम आगे रहेंगे।
संगति पर भी रखें नजर
क्या आपका बच्चा पहले पढ़ने में होशियार था? हमेशा क्लास में अव्वल आता था? अचानक वह पिछड़ने लगा है? ऐसा तो नहीं कि घर या स्कूल में उसके दोस्त ऐसे बच्चे बन चुके हैं, जो उसे बिगाड़ रहे हों। आपके प्रति विद्रोही बना रहे हों। आप जैसे ही पढ़ने-लिखने की महत्ता का पाठ पढ़ाते हैं, वे पलट कर आपको कोई उल्टा-सीधा जवाब दे देते हैं। अगर ऐसा है तो उनकी संगति जानकर समझदारी से उन्हें उनसे दूर करने के उपाय करिए। उन्हें बताएं कि उनमें और उन बिगड़ैल दोस्तों में क्या फर्क है। आप क्या थे और आज उनकी संगति से क्या हो गए हैं। उन्हें बताएं कि इसका नतीजा क्या हो सकता है।
क्या आपका बच्चा पहले पढ़ने में होशियार था? हमेशा क्लास में अव्वल आता था? अचानक वह पिछड़ने लगा है? ऐसा तो नहीं कि घर या स्कूल में उसके दोस्त ऐसे बच्चे बन चुके हैं, जो उसे बिगाड़ रहे हों। आपके प्रति विद्रोही बना रहे हों। आप जैसे ही पढ़ने-लिखने की महत्ता का पाठ पढ़ाते हैं, वे पलट कर आपको कोई उल्टा-सीधा जवाब दे देते हैं। अगर ऐसा है तो उनकी संगति जानकर समझदारी से उन्हें उनसे दूर करने के उपाय करिए। उन्हें बताएं कि उनमें और उन बिगड़ैल दोस्तों में क्या फर्क है। आप क्या थे और आज उनकी संगति से क्या हो गए हैं। उन्हें बताएं कि इसका नतीजा क्या हो सकता है।
प्यार व तर्क देकर मदद करें
प्यार से बच्चों को समझाकर सही दिशा दी जा सकती है। साथ ही उन्हें तर्क देकर बताएं कि आप जो उन्हें समझा रही हैं, वह आखिर क्यों सही है। इससे बच्चे भी आपकी मेहनत और हौसला अफजाई की कद्र करने लगेंगे। रंजना सिंह के पति अमित सिंह नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी के मैनेजर हैं। उनके मुताबिक ‘मैं आज जहां हूं, वह अपनी मां की दी गई शिक्षा की बदौलत हूं। मेरे पिता अनुशासन के पक्के थे और सजा देने में देर नहीं करते थे। मगर मां हमें प्यार से और तर्क देकर समझाते हुए हमारी मदद करती थीं’।
प्यार से बच्चों को समझाकर सही दिशा दी जा सकती है। साथ ही उन्हें तर्क देकर बताएं कि आप जो उन्हें समझा रही हैं, वह आखिर क्यों सही है। इससे बच्चे भी आपकी मेहनत और हौसला अफजाई की कद्र करने लगेंगे। रंजना सिंह के पति अमित सिंह नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी के मैनेजर हैं। उनके मुताबिक ‘मैं आज जहां हूं, वह अपनी मां की दी गई शिक्षा की बदौलत हूं। मेरे पिता अनुशासन के पक्के थे और सजा देने में देर नहीं करते थे। मगर मां हमें प्यार से और तर्क देकर समझाते हुए हमारी मदद करती थीं’।
सीखते रहने का जज्बा बना रहे
अधिकतर बच्चों को लगता है कि अभी स्कूल की पढ़ाई खत्म करेंगे, फिर उसके बाद कॉलेज और फिर प्रोफेशनल कोर्स और फिर पढ़ने व सीखने की छुट्टी। बतौर मां आप कभी भी यह न जताएं कि आप सब कुछ जानती हैं। उनके सामने यह उदाहरण पेश कर सकती है कि मम्मा को जानकारी नहीं थी, मगर कैसे उन्होंने अपने प्यारे से बच्चों के लिए उस काम को सीखा, फिर उन्हें सिखाया। गुड़गांव में रहने वाले राजीव शर्मा अपनी पत्नी की तारीफ करते नहीं थकते। वे कहते हैं ‘मेरी पत्नी लीना ने हमारी बेटी को बहुत कुछ सिखाया है। उसके अंदर संस्कारों को बनाए रखने में उसका काफी हाथ है। मैं उनके सिखाने के तरीके की तहेदिल से कद्र करता हूं। आज मैं भी नित नया सीखने की कोशिश करता हूं।’
अधिकतर बच्चों को लगता है कि अभी स्कूल की पढ़ाई खत्म करेंगे, फिर उसके बाद कॉलेज और फिर प्रोफेशनल कोर्स और फिर पढ़ने व सीखने की छुट्टी। बतौर मां आप कभी भी यह न जताएं कि आप सब कुछ जानती हैं। उनके सामने यह उदाहरण पेश कर सकती है कि मम्मा को जानकारी नहीं थी, मगर कैसे उन्होंने अपने प्यारे से बच्चों के लिए उस काम को सीखा, फिर उन्हें सिखाया। गुड़गांव में रहने वाले राजीव शर्मा अपनी पत्नी की तारीफ करते नहीं थकते। वे कहते हैं ‘मेरी पत्नी लीना ने हमारी बेटी को बहुत कुछ सिखाया है। उसके अंदर संस्कारों को बनाए रखने में उसका काफी हाथ है। मैं उनके सिखाने के तरीके की तहेदिल से कद्र करता हूं। आज मैं भी नित नया सीखने की कोशिश करता हूं।’
बच्चों की दोस्त बनकर रहें
कई दफा स्कूल में अच्छा परिणाम नहीं आता, तो बच्चे डर की वजह से माता-पिता को नहीं बताते। हो सकता है कि वह विषय समझने में कोई कठिनाई महसूस कर रहे हों, हो सकता है कि उसे इसके लिए आपका अतिरिक्त समय चाहिए। अगर आपका बच्चा आपको दोस्त समझता है तो तभी वह निस्संकोच आपसे अपने दिल की बात कह पाएगा और गलत राह में नहीं जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि हमेशा उपदेशात्मक न बनें। उन्हें उनकी मर्जी का भी कुछ करने दें, मगर नियंत्रण भी रखें। उनके साथ दोस्ताना व्यवहार ही उन्हें आपके करीब रखेगा।
कई दफा स्कूल में अच्छा परिणाम नहीं आता, तो बच्चे डर की वजह से माता-पिता को नहीं बताते। हो सकता है कि वह विषय समझने में कोई कठिनाई महसूस कर रहे हों, हो सकता है कि उसे इसके लिए आपका अतिरिक्त समय चाहिए। अगर आपका बच्चा आपको दोस्त समझता है तो तभी वह निस्संकोच आपसे अपने दिल की बात कह पाएगा और गलत राह में नहीं जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि हमेशा उपदेशात्मक न बनें। उन्हें उनकी मर्जी का भी कुछ करने दें, मगर नियंत्रण भी रखें। उनके साथ दोस्ताना व्यवहार ही उन्हें आपके करीब रखेगा।
खुद
को भी अपडेट रखें
अक्सर देखा गया है कि छोटे बच्चे अपनी मां के बेहद करीब रहते हैं, मगर जैसे-जैसे वे बड़े होने लगते हैं तो उनकी दिलचस्पी बाहरी दुनिया में भी बढ़ने लगती है। ऐसे में अगर मां देश-दुनिया में क्या कुछ घट रहा है, इससे अपडेट नहीं है तो बच्चे उनसे दूर होने लगते हैं। और कहीं-कहीं पिता की तुलना में मां को कमतर भी समझने लगते हैं। इसीलिए यह जरूरी है आप भी खुद को अपडेट रखें और नई टेक्नोलॉजी को सीखने और समझने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए बच्चे मोबाइल फोन के एप्लीकेशन को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। जब वे आपसे पूछें तो आप उन्हें बता सकेंगी और उन्हें किसी अन्य से पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यह इसीलिए जरूरी है, क्योंकि उनका सबसे अधिक समय आपके साथ बीतता है।
अक्सर देखा गया है कि छोटे बच्चे अपनी मां के बेहद करीब रहते हैं, मगर जैसे-जैसे वे बड़े होने लगते हैं तो उनकी दिलचस्पी बाहरी दुनिया में भी बढ़ने लगती है। ऐसे में अगर मां देश-दुनिया में क्या कुछ घट रहा है, इससे अपडेट नहीं है तो बच्चे उनसे दूर होने लगते हैं। और कहीं-कहीं पिता की तुलना में मां को कमतर भी समझने लगते हैं। इसीलिए यह जरूरी है आप भी खुद को अपडेट रखें और नई टेक्नोलॉजी को सीखने और समझने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए बच्चे मोबाइल फोन के एप्लीकेशन को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। जब वे आपसे पूछें तो आप उन्हें बता सकेंगी और उन्हें किसी अन्य से पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यह इसीलिए जरूरी है, क्योंकि उनका सबसे अधिक समय आपके साथ बीतता है।