विशेष: मकर संक्रांति पर एक परंपरा ऐसी भी
नोएडा।
जाने-अनजाने को गलतियां हुई हैं, उनकी वजह से कभी भी दिल दुखा हो या
कोई बात बुरी लगी हो और कोई रूठ गया हो तो आज भी नोएडा व ग्रेटर नोएडा के देहात
क्षेत्र में रूठों को मनाने की परंपरा चली आ रही है। मकर संक्रांति के दिन इस
परंपरा को निभाया जाता है।
घर के किसी बुजुर्ग को मनाने के लिए महिलाएं गीत गाते हुए समूह में
जाती हैं और मान-मनौव्वल कर उन्हें घर लेकर आती हैं।
परंपरा जितनी पुरानी है, उतनी ही दिलचस्प भी
है। मकर संक्रांति के दिन घर का कोई भी बुजुर्ग या बड़ा व्यक्ति ऐसा व्यवहार करने
लगता है, जैसे उसे कोई बात बहुत बुरी लग गई हो। वह यह भी
बताने को तैयार नहीं होता कि बात क्या है? इतना ही नहीं वह
रूठकर पड़ोस में किसी भी घर में जाकर बैठ जाते हैं। इसके बाद शुरू होता है उन्हें
मनाने का सिलसिला। कई बार परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कुछ मिनटों में ही
मान-मनौव्वल हो जाती है, जबकि कुछ जगह रूठों को मनाने का
कार्यक्रम कई घंटे तक चलता है। रूठे हुए को मनाने के लिए कपड़े दिए जाते हैं और
उन्हें मिठाई आदि देकर मनाया जाता है। रूठा हुआ व्यक्ति जब घर जाने को तैयार हो
जाता है तो जो उसे मनाने में सबसे आगे होता है, उसे शगुन के
रूप में कुछ रुपये (नेग) भी दिए जाते हैं।
पीढि़यों से चली आ रही है परंपरा -
नोएडा के देहात क्षेत्र में मकर संक्रांति के दिन निभाई जाने वाली यह
परंपरा काफी पुरानी है। हालांकि इसके बारे में सटीक रूप से यह तो कोई भी नहीं
बताता कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, लेकिन पीढि़यों से इस
परंपरा को लोग निभाते आ रहे हैं। आज इस परंपरा को निभाने के लिए कई दिन पहले से
तैयारी होती है। किसी भी घर में जब भी कोई विवाह होता है तो नव दंपति इस परंपरा को
जरूर निभाता है।
माफी मांगी जाती है अपनी गलतियों की -
इस परंपरा को मनाए जाने का उद्देश्य घर को एक मजबूत रस्सी की तरह
बनाए रखना है। वहीं इस दिन घर का सबसे छोटा दंपति अपने से बड़े या घर के किसी भी
बड़े बुजुर्ग से माफी मांगता है कि जाने-अनजाने अगर कोई गलती हुई है तो उसे माफ
किया जाए। इसके लिए बकायदा बुजुर्गो को बच्चों की तरह मनाया जाता है और उन्हें खुश
करने के लिए उनकी पसंदीदा चीज खाने और पहनने के लिए दी जाती है।
बचपन से इस परंपरा को देखते और निभाते आ रहे हैं। पहले गीतों में
शामिल होते थे, फिर हमें भी इस परंपरा को सक्रिय रूप से मनाने का
मौका मिला। पहली बार अपनी सास को मनाया था और अब मेरी बहु मुझे एक बार इस मौका दे
चुकी है कि वह मुझे बनाए।
बढ़े बुजुर्र्गो की शुरू की हुई परंपरा है। आज के युवा शायद इन चीजों
को सिर्फ संस्कार के माध्यम से ही जान सकते हैं। यह अच्छी परंपरा है। इसके जरिए
अपने बुजुर्गो के दिल की बात जानने का मौका मिलता है, वहीं छोटों को इस बात का अहसास भी होता है कि रूठने मनाने की ऐसी भी एक
परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
मकर-संक्रांति पर आज होगा बुजुर्गो का सम्मान-
सोनीपत - सोनीपत के जिले भर में मंगलवार को मकर-संक्रांति का पवित्र
पर्व धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इसके लिए लोगों ने बाजार में जमकर
खरीददारी की। पर्व पर बुजुर्गो का सम्मान किया जाएगा। नवविवाहित महिलाएं रिश्ते
में बड़े पुरुष एवं महिलाओं को शाल, चादर व अन्य वस्त्र
प्रदान कर उनका सम्मान करेंगी।
जिले के सभी क्षेत्रों में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस
दिन नव विवाहित महिलाएं अपने से बड़ों को कुछ न कुछ भेंट करके मनाती हैं। घर-घर में
स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। इस क्रम में आज अनेक बुजुर्ग पुरुष और महिलाओं को
उनकी पुत्र तथा पौत्र वधुओं ने सम्मान स्वरूप कंबल, शाल, साड़ी, धोती, कुर्ते, जूते व जुर्राब आदि भेंट करते है। इस दौरान महिलाएं गीत गाकर माहौल को
बहुत ही सुहाना बना देती है। मकर संक्रांति के दिन वधुओं द्वारा बुजुर्गो का
सम्मान करने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
बुजुर्गो के सम्मान के साथ ही इस दिन श्रद्धालु मकर संक्रांति पर
पवित्र स्नान भी करते है। इस दिन श्रद्धालु दान-पुण्य करते है। कहा जाता है कि मकर
संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण की ओर आ जाता है तथा उसके बाद लोग कोई भी शुभ
कार्य कर सकते हैं।
मकर-संक्रांति पर्व से बढ़ता से मेलजोल -
समाजशास्त्री डा.संतराम देशवाल कहते है कि मकर-संक्रांति जैसे पर्व
आज के दौर में भी युवाओं को पुरानी परम्पराओं से जोड़कर रखते है। यह पर्व हमे अपने
बुजुर्गो का सम्मान करना सिखाता है। युवाओं को चाहिए कि इस तरह के पर्व के बारे
में बारीकी से जानकारी रखे। पुरानी परम्पराएं सामाजिक बुराइयों से लड़ने में काफी
सहायक होती है। इस तरह के पर्व से आपसी मेलजोल व भाइचारा बढ़ता है।