हौसला मजबूत हो और इरादे पक्के तो कितनी भी बड़ी चुनौती का
सामना करना कठिन नहीं है। सहारनपुर में नैशनल पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल उमा
शर्मा (64) इस उदाहरण में एकदम सटीक बैठती हैं। पिछले 7 वर्षों से उमा के
गले से लेकर निचला भाग पूरी तरह से पैरालाइज्ड है और वह बिस्तर
पर ही लेटी रहती हैं। इसके बावजूद वह अपना स्कूल चला रही हैं
उमा के पति का निधन 1991 में हो गया था। इसके बाद जिंदगी तब और मुश्किल हो
गई जब उनके अकेले बेटे राजीव (21) की 2001 में मौत हो गई। साल 2010 में उमा ने अपनी
बेटी ऋचा को भी खो दिया। मुश्किल वक्त उनके लिए खत्म नहीं हुआ। वह साल 2007 में आंशिक
पैरालिसिस का शिकार हो गईं। उनकी हालत लगातार खराब होती चली गई और 2010 में वह पूरी तरह
से पैरालाइज्ड हो गईं, वह सिर्फ अपने सिर और हाथों को हो हिला सकती हैं।
'हार नहीं मानूंगी'
हालांकि, इस दौरान उमा के लिए उस स्कूल को संचालित कर पाना मुश्किल था, जिसकी स्थापना उन्होंने 1992 में की थी। उमा बताती है - 'मैंने तय किया कि हार नहीं मानूंगी और जो कार्य मैं सबसे ज्यादा पसंद करती हूं वह करती रहूंगी यानी कि अपने स्कूल को मैं संचालित करूंगी। सबसे पहले हमने स्कूल और मेरे घर पर डिश कनेक्शन लगवाया, जिससे मैं स्कूल की हर गतिविधि का विडियो आवाज के साथ सुन सकती हूं।' सात साल गुजर गए और डिजिटल आविष्कार उमा के लिए वरदान साबित हुए।
स्कूल के प्रबंधक सुरेंद्र चौहान ने बताया, 'सीसीटीवी कैमरे क्लासरूम, स्टाफ रूम, प्ले ग्राउंड समेत पूरे स्कूल परिसर में लगे हुए हैं। उमा अपने टैबलेट के जरिए स्कूल की प्रत्येक गतिविधि को देख सकती हैं।'
प्रिंसिपल के प्रयासों की सराहना
उमा अक्सर शिक्षकों और बच्चों से टैबलेट के जरिए सीधे तौर पर बात करती हैं और शिक्षकों से स्कूल के बारे में बातचीत करने के लिए उन्हें घर बुला लेती हैं। उमा कहती हैं, 'कई मौकों पर मैं शिक्षकों और अन्य सदस्यों के साथ स्कूल से जुड़े विभिन्न विषयों पर बातचीत करती हूं। यही नहीं होनहार बच्चों और कमजोर बच्चों से भी मैं बात करती हूं।'
वह अपने भोपाल नगर स्थित घर में रहती हैं जो कि ज्वालानगर स्थित उनके स्कूल से पांच किलोमीटर दूर है। उमा के इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। स्कूल में कार्यरत सभी सदस्य अपनी प्रिंसिपल के प्रयासों की सराहना करते हैं। स्टाफ के सदस्य कहते हैं, वह उनके लिए प्रेरणा है और उन्होंने जीवन के मूल्यों को बढ़ा दिया है।
'हार नहीं मानूंगी'
हालांकि, इस दौरान उमा के लिए उस स्कूल को संचालित कर पाना मुश्किल था, जिसकी स्थापना उन्होंने 1992 में की थी। उमा बताती है - 'मैंने तय किया कि हार नहीं मानूंगी और जो कार्य मैं सबसे ज्यादा पसंद करती हूं वह करती रहूंगी यानी कि अपने स्कूल को मैं संचालित करूंगी। सबसे पहले हमने स्कूल और मेरे घर पर डिश कनेक्शन लगवाया, जिससे मैं स्कूल की हर गतिविधि का विडियो आवाज के साथ सुन सकती हूं।' सात साल गुजर गए और डिजिटल आविष्कार उमा के लिए वरदान साबित हुए।
स्कूल के प्रबंधक सुरेंद्र चौहान ने बताया, 'सीसीटीवी कैमरे क्लासरूम, स्टाफ रूम, प्ले ग्राउंड समेत पूरे स्कूल परिसर में लगे हुए हैं। उमा अपने टैबलेट के जरिए स्कूल की प्रत्येक गतिविधि को देख सकती हैं।'
प्रिंसिपल के प्रयासों की सराहना
उमा अक्सर शिक्षकों और बच्चों से टैबलेट के जरिए सीधे तौर पर बात करती हैं और शिक्षकों से स्कूल के बारे में बातचीत करने के लिए उन्हें घर बुला लेती हैं। उमा कहती हैं, 'कई मौकों पर मैं शिक्षकों और अन्य सदस्यों के साथ स्कूल से जुड़े विभिन्न विषयों पर बातचीत करती हूं। यही नहीं होनहार बच्चों और कमजोर बच्चों से भी मैं बात करती हूं।'
वह अपने भोपाल नगर स्थित घर में रहती हैं जो कि ज्वालानगर स्थित उनके स्कूल से पांच किलोमीटर दूर है। उमा के इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। स्कूल में कार्यरत सभी सदस्य अपनी प्रिंसिपल के प्रयासों की सराहना करते हैं। स्टाफ के सदस्य कहते हैं, वह उनके लिए प्रेरणा है और उन्होंने जीवन के मूल्यों को बढ़ा दिया है।
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