राधे-राधे के
दम पर कद को दी मात
वृंदावन।
कद को देख हर मुस्कराहट सुकून नहीं बल्कि जी जलाती थी। कोई छोटू कहता तो कोई बौना
और कोई कुछ..। हिम्मत दिखाई किस्मत चमकी और साढ़े तीन फुट के राजाराम की राधे-राधे
हो गई। अपने देश में नहीं बल्कि सात समंदर पार साढ़े तीन फुट के राजाराम और उनसे
एक इंच कम उनकी पत्नी माया विदेशों में रास लीला करते हैं।
वहां उनके कद को हिकारत से नहीं बल्कि कलाकार के रूप में सम्मान से
देखा जाता है।
विश्वविख्यात रासाचार्य पद्मश्री स्वामी हरिगोविंद की रास मंडली में
शामिल राजाराम और उनकी माया की अपनी कहानी है। मूल रूप से मथुरा रिफाइनरी के पास
बसे गांव गिजनुआं के रहने वाले राजाराम शर्मा माता-पिता के अनूठे प्रेम में पले।
राजाराम बताते हैं कि कद छोटा होने के कारण चौदह-पंद्रह साल की उम्र में उन्हें
उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। आखिरकार पिता सियाराम और मां भागवती ने पढ़ाई छुड़वा
दी। जैसे-तैसे हाईस्कूल पास किया। परीक्षा में नंबर अच्छे मिले, मगर नौकरी की राह में कद रोड़ा बन गया।
राजाराम ने बताया कि परेशानी के दौर में एक दिन मन में भाव जागा कि
जिसने उसे छोटा कद दिया वही कल्याण भी करेगा। सो मथुरा पहुंच गया। वहां रोजाना
प्रात: यमुना स्नान कर द्वारिकाधीश की सेवा शुरू कर दी। मंदिर के सेवायत श्रद्धा
भाव देखकर खाने को देने लगे। दर्शन के बाद श्रद्धालु कुछ पैसे भी दे देते, जिन्हें ठाकुर का आशीर्वाद समझकर रख लेता। बारह साल के लंबे अंतराल के बाद
जैसा कि उसने बताया उसके पिता और माता उसे मथुरा आकर ले गये, घर जाकर बताया कि आगरा से उसके लिये रिश्ता आया था, लड़की
भी उसी के कद के बराबर है।
परिवार बढ़ा तो काम की जरुरत हुई। वृंदावन के रासाचार्य पद्मश्री
स्वामी हरगोविंद महाराज की शरण में पत्नी के साथ पहुंचा तो वहां आशीर्वाद मिला।
रहने के ठिकाने के साथ-साथ रासलीला में शामिल कर दिया। इसके बाद जिंदगी ही बदल गई।
वह सिंगापुर, अमेरिका, रूस, हांगकांग, बांग्लादेश नेपाल समेत कई देशों में
रासलीला में राधे-राधे कर चुका है। रासलीला में वह अच्छे कमेडियन के रूप में भी
देशभर और विदेशों में विख्यात है।
एमए पास है माया-
तीन फुट पांच इंच की माया शर्मा भी कम नहीं है। जहां राजाराम
हाईस्कूल पास है तो माया ने एमए तक शिक्षा प्राप्त की है। कहतीं है सब कुछ कन्हैया
का है। हम दोनों साथ-साथ काम करते हैं और साथ मिलकर कन्हैया की सेवा करते हैं।