सफलता के लिए जोश ही नहीं होश की भी होती है जरूरत



काम करने के लिए जोश चाहिए। काम को ढंग से पूरा करने के लिए होश। काम करना है तो दोनों का ही होना जरूरी है। जब दोनों मिल जाते हैं, तो कमाल होता है। जब जोश के घोड़े दौड़ रहे हों, तो उनकी लगाम बुद्धि को सौंप देना जरूरी हो जाता है। सफल बिजनेसमैन और लीडरशिप कोच भी यही मानते हैं। काम के लिए जोश बेहद जरूरी है, पर केवल उसके बलबूते रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर नहीं किया जा सकता। उसके लिए बेहतर सोच की जरूरत होती है।
जोश ही काफी नहीं
जिस तरह गुस्से या तैश में आए व्यक्ति के साथ तर्कसंगत बात करना मुश्किल होता है, उसी तरह बेहद भावुक व्यक्ति को भी सही कारण समझा पाना मुश्किल होता है। अमेरिकी उद्यमी गैरी वी कहते हैं, ‘किसी जगह पहुंचने का जोश जब अंधा हो जाता है, तब साथ वालों के प्रति रूखे हो जाते हैं। गलत तरीके अपनाने में भी हिचकते नहीं।
मैनेजमेंट की पाठशाला में पढ़ाया जाता है कि जब जोश हावी होता है तब हम सही-सही सोच नहीं पाते। हमें लगता है कि हम सब जानते हैं और सब कर सकते हैं। लेखिका ऐमी कॉस्पर कहती हैं,‘जोश अगर हमें हवाई जहाज से गिरा देता है तो होश पैराशूट के कॉर्ड को खींच लेता है।' जोश यानी ऊर्जा। उसके बिना काम को शुरू करना या घंटों उसमें जुटे रहना संभव ही नहीं है। पर अनियंत्रित ऊर्जा विस्फोट कर सकती है, उसे सही दिशा दिखाते रहना जरूरी होता है। उसके लिए होश में रहना जरूरी होता है।
काम करते रहने से  मिलता है अनुभव
अपनी सोच, इच्छा, लक्ष्य, विचार, उत्पाद या कुछ कर गुजरने के लिए भीतर आग होना जरूरी हैै। किताब विस्डम मीट पैशन' में डैन मिलर व जेअर्ड एंगाजा लिखते हैं,‘आग खुद से नहीं जलती। उसके लिए ज्ञान और विवेक के ईंधन और ऑक्सीजन की जरूरत होती है।' हलांकि हम एक दिन में ही समझदार नहीं हो जाते। काम करते रहने से ही अनुभव मिलते हैं और यह अनुभव हमारी समझ बनते जाते हैं।
यह भी कह सकते हैं कि जानते-समझते हुए भी जब हम अटके रहते हैं, कुछकरते नहीं, तब जोश की जरूरत होती है। और जब काम करते हुए अचानक कोई अड़चन आ जाती है तो उससे उबरने के लिए हमें होश की जरूरत होती। होश साथ है तो हम कम में भी बढ़िया से बढ़िया काम कर जाते हैं। मैनेजमेंट कंसल्टेंट जॉन हीगल कहते हैं,‘जोश और होश का तालमेल हमें बेहतर रिश्तों की ओर ले जाता है। हम दूसरों को भी आगे ले जाते हैं।और यूं भी समझदारी के साथ बढ़ाए गए छोटे-छोटे कदम बड़ी चीजों को भी गति दे देते हैं।
ब्रह्मांड पर करें भरोसा
चिंतक खलील जिब्रान का कहना है, ‘हम जब प्रकृति की शीतल छांव में बैठकर हरियाली और शांति को महसूस करें, तब अपने दिल को चुपके से कहने दें-प्रभु विवेक में बसते हैं। और जब बारिश और तूफान हमें हिला रहे हों तो कहें-प्रभु, जोश में बढ़ते हैं। आप भी विवेक के साथ आराम करिए और जुनून के साथ आगे बढ़ते रहिए।'
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