संकल्प


आपके जीवन में असफलता के पल कुछ हद तक निराशा रूपी अंधकार के पल हो सकते हैं, लेकिन यदि हम इसी को सब कुछ मानकर घर बैठ जाएं, घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लें, तो हम वास्तव में असफल हैं। कालांतर में यही असफलता हमारी चिरसंगिनी बन जाती है। अब सवाल उठता है कि आखिर हम ऐसी भावना को अपने दिल में जगह क्यों देते हैं? यदि आप जीवन की दुखद सच्चाइयों के आगे भी निडर और संकल्पित होकर चट्टान की भांति डटे रहेंगे, तो कुदरत भी आपकी इच्छा की मोहताज हो जाएगी। इसके ठीक उलट यदि आप निराशा को भी आशा मान लें, तो कालांतर में यही आपके लिए आशा का स्नोत बन जाएगी, आपको सफलता की ओर अग्रसर कर देगी। असल में प्रकाश तो अंधकार के बाद ही आता है। प्रलय का अंत नवसृष्टि के निर्माण में ही होता है। हालांकि यह सापेक्ष है। कुछ मामलों में हमारा भविष्य अनिश्चित जरूर है, लेकिन सर्वथा अंधकारमय नहीं है। यदि हम किसी वजह से असफल हैं, तो एक दिन सफल भी अवश्य होंगे, किंतु सच्ची लगन और हिम्मत को सहारा बनाकर ही।
याद रखें, जो व्यक्ति देखने में अधिक ताकतवर होता है, वह भीतर से दुर्बल भी हो सकता है। वह छोटी-सी परेशानी आने पर भी खोखले वृक्ष की तरह उखड़कर गिर जाता है, टूट जाता है। और फिर कभी ऊपर नहीं उठ पाता, लेकिन जिस मानव में भावनात्मक शक्ति और साहस होगा, जो संकल्पित होगा, उसे प्रतिकूल परिस्थितियों से मुकाबला करने में भी परेशानी का अहसास नहीं होगा। वस्तुत: व्यक्ति के अंदर जो आत्मबल होता है, वह सूरज की तेजस्विता सरीखा होता है और जो घने काले बादलों को बींधकर भी अपने अस्तित्व का परिचय देता रहता है। यदि व्यक्ति संकल्प लेकर पूरे मनोयोग से अपने उद्देश्य को पूरा करने में जुट जाए, तो वह उसे जरूर हासिल कर लेता है। भले ही उसके पथ में कितनी ही विपत्तियां क्यों न आएं। वह विपत्तियों की कोई चिंता नहीं करता। वह समझता ही नहीं कि विघ्न-बाधा क्या वस्तु है। सफलता के रास्ते में परेशानियां उसी व्यक्ति को होती हैं, जिसका मन अस्थिर होता है और उसका ध्यान अपने लक्ष्य पर नहीं होता। दृढ़निश्चयी और संकल्पित व्यक्ति के सम्मुख परेशानियां पलायन कर जाती हैं।


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