एक गांव में गरीब नौजवान रहता था। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। माता ही उसका पालन-पोषण करती थी। उस राज्य का राजा बहुत शक्तिशाली थी। राजा को अपनी सेना का एक हाथी बेहद प्रिय था। हाथी को रोजाना सुबह सिपाहियों के साथ घूमने के लिए भेजा जाता था। जब हाथी इस गांव से गुजरता तो वह नौजवान उस हाथी की पूंछ पकड़कर उसे पांच कदम पीछे खींच लेता था। हाथी भी अपनी पूरी ताकत लगा देता था, लेकिन नौजवान की शक्ति के आगे उसकी एक नहीं चलती थी।
हाथी इससे काफी अपमानित महसूस करने लगा। वह सोचने लगा कि अगर राजा को यह बात पता लग गई कि तो राजा उसे मारने का हुक्म दे देगा। इसी चिंता में वह हाथी धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। एक दिन राजा ने हाथी को देखा तो वह काफी बीमार और कमजोर नजर आया। राजा ने महावत को बुलाया और इसका कारण पूछा। महावत ने राजा को सारी बात बता दी। राजा को महावत की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कल मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। अगले दिन जब उस गांव में हाथी पहुंचा तो उस नौजवान ने फिर से हाथी की पूंछ पकड़कर उसे पांच कदम पीछे खींच दिया।
राजा ने सिपाहियों से उस नौजवान के बारे में पता लगाया और उसकी मां को दरबार में बुलाया। राजा ने पूछा कि तुम्हारा बेटा बहुत बलशाली है, उसे क्या खिलाती हो। महिला ने कहा कि महाराज मैं तो बहुत गरीब हूं। दो वक्त की गेहूं की रोटियां भी नसीब नहीं हो पातीं, मैं अपने पुत्र को नमक के साथ बाजरे की रोटी खिला पाती हूं। राजा ने कहा कि तुम्हारे पुत्र को सेना में उच्च पद दिया जाएगा लेकिन इसके बदले में तुम्हें अपने पुत्र को भोजन परोसते वक्त रोटी के साथ नमक नहीं देना है। जब वह नमक मांगे, तो उससे कह देना कि कल से रोटी मैं कमाऊंगी और नमक तुम्हें कमाना होगा।
नौजवान की मां ने ऐसा ही किया। यह सुनकर वह नौजवान चिंता में डूब गया। उसने कभी काम नहीं किया था। उसे चिंता सताने लगी कि मैं नमक कैसे कमाऊंगा। अगले दिन राजा का हाथी फिर उस गांव में आया तो नौजवान ने हाथी की पूंछ पकड़कर उसे पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन आज तो हाथी को वह रोक नहीं सका बल्कि हाथी उसे खींचता हुआ लेकर चला गया।
इस कहानी की सीख है कि चिन्ता, इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है, जो उसकी सारी शक्ति, सारी क्षमताओं को खा जाती है। उस नौजवान ने चिंता में डूबकर अपनी सारी शक्ति भुला दी। इसलिए चिंता छोड़िए और चिंतन कीजिए कि चिंता से छुटकारा कैसे मिले।