Lockdown : न्यूटन से लेकर डार्विन और मिल्टन तक “ सोशल डिस्टेंसिंग” में ही पहुँचे ऊँचाइयों पर



दुनिया की कई महान खोजें लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की देन हैं। सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच्चाई है कि लॉकडाउन के दौरान दुनिया में बहुत सारी अच्छी खोज की गई है, अच्छे साहित्य रचे गए हैं। आज दुनिया जिसे सर आइजक न्यूटन, चार्ल्स डार्विन, जॉन मिल्टन और लॉर्ड वायरन के नाम से जानती है, कभी इन महान लोगों ने भी अपने जीवन में लंबा समय लॉकडाउन  जैसी स्थिति में सोशल डिस्टेंसिंग की तरह बिताया था। हालांकि तब उसे लॉकडाउन नहीं कहा जाता था, उस दौरान इसे संगरोध या अलगाव कहा गया था। दुनिया के कई हिस्से जब हैजा, प्लेग जैसी बीमारियों से जूझ रहे थे, तब लोगों के समक्ष कोरोना जैसा ही गंभीर संकट था और इन महामारियों की कोई दवा मौजूद नहीं थी। ऐसे में लोग समाज से कट कर अपने घरों में रहने को मजबूर हुए। 

उस दौर में महामारियों के समय क्वारंटीन और आइसोलेशन जैसी शब्दावली नहीं थी, लेकिन कमोबेश ऐसी ही स्थिति थी। सामाजिक प्राणी कहा जाने वाला मानव यह सोच नहीं पा रहा था कि समाज से कट कर लोगों से अलग कैसे रहा जाए। उस दौर में संगरोध या क्वारंटीन या आइसोलेशन जैसी स्थिति ने कुछ विद्वानों में ज्ञान-विज्ञान की समझ विकसित करने में काफी मदद की। इतिहास गवाह है कि उस दौरान आइजक न्यूटन, चार्ल्स डार्विन, जॉन मिल्टन और लॉर्ड वायरन ने पूरी दुनिया को विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में जो कुछ भी दिया, वह लॉकडाउन की ही देन है। 

आइजक न्यूटन

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के छात्र रह चुके और विज्ञान के कई सिद्धांत देने वाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने लॉकडाउन जैसी स्थिति के दौरान विश्वविद्यालय के अभिलेखागार में अपना लंबा समय बिताया। प्लेग महामारी के संक्रमण के समय न्यूटन पोस्टर चाइल्ड बने। साल 1665-66 में इस महामारी को रोकने और जागरूकता के लिए जो पोस्टर बनाए गए थे, उसमें न्यूटन पोस्टर चाइल्ड के रूप में थे। जब बीमारी फैल रही थी, तब न्यूटन ने अपने परिवार और समाज से अलग रह कर समय बिताया और इससे उनके अंदर एक अलग तरह की भावना विकसित हुई। आगे चलकर एकांत का यही अभ्यास उनके बहुत काम आया और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत, गति के नियम, प्रतिबिंब के सिद्धांत दिए। प्रिज्म के साथ प्रकाश का प्रयोग किया और रंगों के विकिरण के बारे में बताया। न्यूटन ये सब परिवार और समाज से अलग और एकांत में रहते हुए ही कर पाए।

चार्ल्स डार्विन

विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सिद्धांत देने वाले चार्ल्स डार्विन का अनुभव, आइसोलेशन के संबंध में देखा जाए तो यह किसी महामारी से नहीं, बल्कि उनकी खुद की बीमारी से जुड़ा था। सिर चकराना, उल्टी, शरीर में ऐंठन, थकान, चिंता, विजन प्रॉब्लम जैसी कई समस्याओं से वह पीड़ित रहते थे। साल 1876 में वह समाज से अलग रहे। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है कि लंबे समय तक वे कहीं नहीं गए। किसी तरह के मनोरंजक या सामाजिक गतिविधियों में सहभागी नहीं हो पाए। उनका मानना था कि उनकी बीमारी के कारण पैदा हुई आइसोलेशन यानी अलगाव जैसी स्थिति ने उनके वैज्ञानिक करियर में मदद की और इसी कारण वह शोध के प्रति खुद को समर्पित रख पाएं। 

लॉर्ड बायरन

लॉर्ड बायरन ने अपने जीवन का काफी लंबा समय अलगाव और एकांत में बिताया। हैजा संक्रमण काल के बीच बायरन जब ग्रीस से लौटे तो उन्हें माल्टा में संगरोध के लिए मजबूर किया गया। उन्हें इस बात का गुस्सा भी था कि उन्हें माल्टा में 40 दिन क्यों बिताना पड़ा। इसे उन्होंने बेईमानी, जबरदस्ती और अनावश्यक माना। हालांकि लौटते समय माल्टा के लिए उन्होंने 'फेयरवेल टू माल्टा' शीर्षक से एक विदाई गीत लिखा, यह व्यंग्यात्मक कविता के रूप में थी। बाद में उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि ये दिन उनके लिए एक अलग तरह का अनुभव था, जो कई सारी सीखें दे गया।  

जॉन मिल्टन 

पैराडाइज लॉस्ट और एरोपैगिटिका जैसी महान रचना के लेखक जॉन मिल्टन को भी साल 1626 में लॉकडाउन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। जब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अंतर्गत क्राइस्ट कॉलेज में स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र थे, तब शहर बुबोनिक प्लेग की चपेट में था। उस वक्त वह लंदन स्थित अपने घर में कैद थे, उसी दौरान उन्होंने हास्य शैली में एलिगिया प्राइमा की रचना की। यह हास्य शैली में एक बड़ा और प्रभावशाली उदाहरण माना जाता है। 
न्यूटन, डार्विन, लॉर्ड वायरन और जॉन मिल्टन के रूप में बड़े उदाहरण दुनिया ने देखे हैं, जो यह बताता है कि लॉकडाउन केवल समस्याएं ही लेकर नहीं आता, बल्कि सृजनशीलता भी विकसित करता है।