कामयाबी की राह

कर्म भाग्य को बदल सकता है

इनके लिए 'सुनने की मशीन' बनाना चाहते थे ग्राहम बेल,ऐसे बन गया -

'टेलिफोन'

अलेक्जेंडर ग्राहम बेल की पत्नी माबेल गारडीनर सुन नहीं सकती थीं। ग्राहम बेल और उन्हें आपसी संवाद करने में बहुत दिक्कत होती थी। कुछ समय बाद ग्राहम बेल और माबेल एक-दूसरे के साथ संकेतों में बात करने लगे। एक दिन वह माबेल के साथ संकेतों से बात कर रहे थे, तभी उनका ध्यान माबेल के कानों की तरफ गया। वह उनके कानों को ध्यान से देख रहे थे। यह देखकर माबेल संकेत से कान की ओर इशारा करके बोलीं, ‘कान में क्या देख रहे हो?’

ग्राहम बेल ने संकेत में माबेल को बताया, ‘सोच रहा हूं कि क्या कोई ऐसी मशीन बन सकती है जो सुनने में मदद कर सके? यदि सुनने वाली मशीन बन गई तो फिर मैं और तुम आराम से बातें कर पाएंगे।’ यह सुनकर माबेल मुस्कराने लगीं। ग्राहम बेल अपने आविष्कार में लग गए। उन्हें एक ही धुन सवार थी कि किसी तरह सुनने की मशीन का आविष्कार करना है। वह दिन-रात प्रयोग करते रहते। इस दौरान कई बार तो खाना भी खाना भूल जाते। यहां तक कि उन्हें दिन और तारीख का भी ध्यान नहीं रहता।

आखिर कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने एक आविष्कार कर ही लिया। जब वह आविष्कार लोगों के सामने आया तो वह सुनने की मशीन नहीं थी, वह आविष्कार था टेलिफोन। माबेल को ज्ञात हुआ कि ग्राहम बेल सुनने की मशीन बनाने में कामयाब नहीं हो पाए लेकिन उन्होंने टेलिफोन बनाने का सिद्धांत अवश्य ढूंढ निकाला। यह जानकर वह ग्राहम बेल को सांत्वना देते हुए संकतों में माबेल बोलीं, ‘जिस तरह आपने टेलिफोन का आविष्कार कर दिया है, उसी तरह एक दिन सुनने की मशीन का आविष्कार भी अवश्य हो जाएगा।’ माबेल की बात सत्य सिद्ध हुई। आज सुनने की मशीन का आविष्कार हो चुका है और अनेक बधिर व्यक्ति उसका लाभ भी उठा रहे हैं।